Swami Vivekananda Biography in hindi | स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
Swami Vivekananda Biography in hindi | स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
जीवन परिचय | |
---|---|
वास्तविक नाम | नरेंद्रनाथ दत्ता |
उपनाम | नरेंद्र और नरेन |
व्यवसाय | भारतीय संत और भिक्षु |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 12 जनवरी 1863 |
जन्मस्थान | 3 गोरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट, कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु तिथि | 4 जुलाई 1902 |
मृत्यु स्थल | बेलूर मठ, बंगाल प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश भारत |
आयु (मृत्यु के समय) | 39 वर्ष |
मृत्यु कारण | मस्तिष्क की नसों के फटने से |
हस्ताक्षर | ![]() |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत |
राशि | मकर |
स्कूल | ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन (1871) |
कॉलेज | • प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी (कोलकाता) • जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन (स्कॉटिश चर्च कॉलेज, कोलकाता) |
शैक्षणिक योग्यता | कला में स्नातक (1884) |
धर्म | हिन्दू |
जाति | कायस्थ |
पता | 105, विवेकानंद रोड, कोलकाता, पश्चिम बंगाल 700006 ![]() |
विवाद | जुलाई 2018 में, आनंद कुमार विवादों में तब आए, जब उन्ही के कोचिंग सेंटर के एक विद्यार्थी ने उन पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। विद्यार्थियों का कहना है कि आनंद कुमार ने अपने कोचिंग सेंटर की छवि को बढ़ा चढ़ाकर कर प्रस्तुत किया है कि उनके कोचिंग सेंटर से हर बार की तरह आईआईटी जेईई परीक्षा 2018 में 30 विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए हैं। जिसे देखकर अन्य विद्यार्थी उनके कोचिंग सेंटर में दाखिला लेने के लिए आते हैं, तो वह उन्हें अपने आर्थिक लाभ के लिए किसी अन्य कोचिंग सेंटर "रामानुजम मैथमेटिक्स" में भेज देते हैं। जिससे उन्हें कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारी | |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
परिवार | |
पत्नी | कोई नहीं |
माता-पिता | पिता - विश्वनाथ दत्ता (कलकत्ता उच्च न्यायालय में अटॉर्नी) (1835-1884) माता - भुवनेश्वरी देवी (गृहिणी) (1841-1913) ![]() |
भाई-बहन | भाई - भूपेंद्रनाथ दत्ता (1880-1961), ![]() महेंद्रनाथ दत्ता ![]() बहन - स्वर्णमोयी देवी (16 फरवरी 1932 को मृत्यु) ![]() |
पसंदीदा चीजें | |
पसंदीदा कविता | Kali The Mother |
स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
विवेकानंद के दादा दुर्गाचरण दत्ता फारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे।
युवावस्था के दौरान वह अध्यात्म पर गहन चिंतन करते थे, जिसे वह हिन्दू देवी देवताओं के समक्ष ध्यान लगाने के लिए प्रयोग करते थे।
वह बचपन में बहुत शरारती थे, जिसके चलते उनके माता-पिता को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
वर्ष 1879 में, उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया।
उनकी संस्कृत, साहित्य, धर्म, दर्शन, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और बंगाली साहित्य में गहरी दिलचस्पी थी।
उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से यूरोपीय इतिहास, western logic और दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की।
उन्हें पुराणों, वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत और भगवत गीता जैसे प्राचीन भारतीय वैदिक ग्रंथों को पढ़ना पसंद था।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण प्राप्त करने के अलावा वह खेल और विभिन्न शारीरिक अभ्यासों में भी कुशल थे।
वह हरबर्ट स्पेंसर (अंग्रेजी दार्शनिक, जीवविज्ञानी, मानवविज्ञानी) और उनके विकास के सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे।
वर्ष 1880 में, वह केशब चंद्र सेन के धार्मिक आंदोलन ‘नव विधान’ में शामिल हुए।
वर्ष 1884 में, वह फ्रीमेसनरी लॉज में शामिल हुए और उसके बाद देवेंद्रनाथ टैगोर और केशब चंद्र सेन के नेतृत्व वाले ‘साधारण ब्रह्मो समाज’ के सदस्य बने।
केशब चंद्र सेन के ब्रह्मो समाज और पश्चिमी अध्यात्म के विचारों से प्रभावित होने के बाद, उन्होंने भारतीय रहस्यवादी और योगी रामकृष्ण से मुलाकात की।
वर्ष 1882 में, वह रामकृष्ण से मिलने के लिए अपने दोस्तों के साथ दक्षिणेश्वर गए। प्रारंभ में, विवेकानंद को उनकी शिक्षाएं पसंद नहीं आई, लेकिन बाद में वह उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए।
आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण
वर्ष 1884 में, अपने पिता की मृत्यु के बाद, उनके परिवार को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा। अपने परिवार की मदद के लिए उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहे।
उन्होंने पुनः रामकृष्ण से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि वह अपने परिवार के वित्तीय संकट को हल करने के लिए देवी काली से प्रार्थना करें। रामकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि वह स्वयं प्रार्थना करें। जिसके बाद विवेकानंद मंदिर गए, लेकिन उन्होंने भगवान से कुछ भी नहीं मांगा और सच्चे ज्ञान और भक्ति के लिए प्रार्थना की।
भगवान को महसूस करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण को अपने आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्वीकार किया। जिन्होंने 16 अगस्त 1886 को कोसिपुर में मृत्यु के समय विवेकानंद को अपने मठवासी शिष्यों की ज़िम्मेदारी दी। गुरु की सेवा के अंतिम दिनों में उन्होंने ‘निर्विकल्प समाधि’ का अनुभव किया।
विवेकानंद कोसिपुर में
रामकृष्ण की मृत्यु के बाद, जब किसी ने भी उनके शिष्यों की वित्तीय रूप से सहायता नहीं की, तब विवेकानंद ने बरनगर में एक घर की मरम्मत की और उसे शिष्यों के मठ के रूप में परिवर्तित किया। जहां, वह रोज़ाना अपने शिष्यों के साथ ध्यान और तपस्या करते थे।
दिसंबर 1886 में, उन्होंने अपने अन्य भिक्षुओं के साथ मिलकर आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण की भांति समान जीवन जीने के लिए शपथ ग्रहण की। जिसके चलते उनका नया नाम “स्वामी विवेकानंद” पड़ा।
स्वामी विवेकानंद
वर्ष 1887 में, वैष्णव चरण बसक की मदद से उन्होंने बंगाली गीतों की एक एल्बम ‘संगीत कालपतरू’ को संकलित किया।
वर्ष 1888 में, उन्होंने मठ को छोड़ दिया और एक सन्यासी की तरह जीवन व्यतीत करने लगे। जिसके चलते विवेकानंद ने लगातार पांच वर्षों तक भिक्षा से ही जीवनयापन किया। इस दौरान उन्होंने भारत स्थित शिक्षण केंद्रों, विभिन्न समुदायों, विभिन्न जातियों के लोगों से मिलना, विभिन्न स्थानों का दौरा किया।
30 जुलाई 1893 को, उन्होंने चीन, जापान और कनाड़ा जैसे देशों का दौरा किया। उसके बाद वह शिकागो गए।
11 सितंबर 1893 को, विवेकानंद ने हिंदू धर्म पर एक भाषण दिया। जिसमें उन्होंने “शिव महिमा स्त्रोतम” के आधार पर मनुष्य के विभिन्न मार्गों की तुलना की है। दर्शकों ने उनके भाषण की सराहना की और यही-नहीं अमेरिका के कई समाचार पत्रों ने भी उनके भाषण की सराहना की।
विवेकानंद हिंदू धर्म पर भाषण देते हुए
उन्होंने अमेरिका के विभिन्न स्थानों का दौरा किया और वर्ष 1894 में वेदांता सोसाइटी (न्यूयॉर्क) की स्थापना की।
वर्ष 1895 में, उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण विदेशी दौरे पर जाना बंद कर दिया और एक निश्चित स्थान वेदांता में व्याख्यान देना शुरू कर दिया।
मई 1896 में, विवेकानंद ने ब्रिटेन की यात्रा की और रामकृष्ण की जीवनी के लेखक मैक्स मुलर से मुलाकात की।
उन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि से सम्मानित किया गया, लेकिन उन्होंने एक साधु के रूप में अपनी प्रतिबद्धता के कारण उसे अस्वीकार कर दिया।
उन्होंने पश्चिमी लोगों के लिए “पतंजलि के योग सूत्र” की पेशकश की।
उन्होंने विदेशियों के लिए कैलिफोर्निया स्थित सैन जोस में ‘शांति आश्रम’ (पीस रिट्रीट) की स्थापना की।
उनके द्वारा ‘वेदांता सोसाइटी’ (दक्षिणी कैलिफोर्निया में) नाम से आध्यात्मिक समाज हॉलीवुड में भी स्थापित है।
हॉलीवुड में उनके द्वारा स्थापित वेदांता प्रेस भी है, जो भारतीय ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित करती है।
वर्ष 1895 में, उन्होंने एक पत्रिका ‘ब्रह्मवाद्दीन’ को शुरू किया और वर्ष 1896 में अपनी पुस्तक ‘राजा योग’ प्रकाशित की।
15 जनवरी 1897 को, उनका भारत के विभिन्न हिस्सों में लोगों द्वारा बड़े उत्साह से स्वागत किया गया। जिसके चलते उन्होंने रामेश्वरम, पांबन, कुम्भकोणम, मद्रास, रामनद और मदुरै में व्याख्यान दिए।
सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उन्होंने 1 मई 1897 को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
उन्होंने ‘अद्वैता आश्रम’, मायावती अल्मोड़ा के पास और इसके अलावा मद्रास में एक और मठ की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद अद्वैता आश्रम, मायावती
उन्होंने बंगाली में ‘Udbhodan’ और अंग्रेजी में ‘Prabuddha Bharata’ पत्रिका की शुरुआत की।
उन्होंने जमशेदजी टाटा द्वारा प्रस्तावित ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ के प्रमुख की स्थिति को खारिज कर दिया था।
वर्ष 1898 में, उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु की महिमा को एक आरती “Khandana Bhava Bandhana” के रूप में प्रस्तुत किया।
जून 1899 में, उन्होंने न्यूयॉर्क और सैन फ्रांसिस्को में वेदांता सोसाइटी की स्थापना की।
विवेकानंद सैन फ्रांसिस्को में
4 जुलाई 1902 को, रामकृष्ण मठ में वैदिक कॉलेज की योजना पर चर्चा करने के बाद वह शाम को सात बजे अपने कमरे में गए और ध्यान मुद्रा में अपने शरीर को त्याग दिया। जिसके चलते गंगा के निकट बेलूर में एक बैंक के पास उनका संस्कार किया गया।
विवेकानंद ध्यान मुद्रा में
उनके राष्ट्रवादी विचारों और सामाजिक सुधार भावना ने महात्मा गांधी , सुभाष चंद्र बोस , बाल गंगाधर तिलक, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, श्री अरबिंदो, रवींद्रनाथ टैगोर, इत्यादि भारतीय नेताओं को प्रेरित किया।
वर्ष 2012 में, उनके सम्मान में रायपुर हवाई अड्डे का नाम ‘स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट’ रखा गया।
उनकी प्रमुख साहित्यिक रचना ‘संगीत कालपतरू’ (1887), ‘कर्म योग’ (1896), ‘राजा योग’ (1896), ‘वेदांता दर्शन’ (1897), ‘जनाना योग’ (1899), ‘माई मास्टर’ (1901), ‘वेदांता दर्शन: जनाना योग व्याख्यान’ (1902) और ‘वर्तमान भारत’ जो बंगाली भाषा में हैं।
12 जनवरी को, उनका जन्मदिन भारत में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
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