Sahir Ludhianvi Biography in Hindi | साहिर लुधियानवी जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
Sahir Ludhianvi Biography in Hindi | साहिर लुधियानवी जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
जीवन परिचय | |
---|---|
वास्तविक नाम | अब्दुल हई |
उपनाम | साहिर लुधियानवी |
व्यवसाय | कवि, गीतकार |
शारीरिक संरचना | |
लम्बाई | से० मी०- 183 मी०- 1.83 फीट इन्च- 6’ |
वजन/भार (लगभग) | 80 कि० ग्रा० |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | काला |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 25 अक्टूबर 1980 |
जन्मस्थान | लुधियाना, पंजाब, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु तिथि | 25 अक्टूबर 1980 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
आयु (मृत्यु के समय) | 59 वर्ष |
मृत्यु कारण | दिल का दौरा |
राशि | मीन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | लुधियाना, पंजाब, भारत |
स्कूल/विद्यालय | खालसा हाई स्कूल, लुधियाना, पंजाब |
महाविद्यालय/विश्वविद्यालय | एस सी धवन सरकारी बॉयज कॉलेज, लुधियाना, पंजाब दयाल सिंह कॉलेज, लाहौर |
शैक्षिक योग्यता | स्नातक |
परिवार | पिता - फज़ल मोहम्मद माता- सरदार बेगम भाई- ज्ञात नहीं बहन- ज्ञात नहीं |
धर्म | नास्तिक |
शौक/अभिरुचि | पुस्तकें पढ़ना और यात्रा करना |
पुरस्कार/सम्मान | • वर्ष 1958: में, उन्हें "औरत ने जन्म दिया साधना" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। • वर्ष 1964: में, उन्हें फ़िल्म ताजमहल के गीत "जो वादा किया" के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। • वर्ष 1971: में, उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। • वर्ष 1977: में, उन्हें फिल्म कभी-कभी के गीत "कभी कभी मेरे दिल में" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। |
विवाद | • वह अपने तुनक मिज़ाजी के कारण काफी विवादों में रहे हैं। • वह संगीतकारों को सिर्फ अपनी ही नज़्मों का प्रयोग करने के लिए ही कहते थे। जिसके चलते वह विवादों में रहे। • उन्होंने लता मंगेशकर की तुलना में 1 रुपए ज्यादा भुगतान करने पर जोर दिया, जिसके चलते दोनों के बीच काफी अनबन हो गई। • अपने रसूख का उपयोग करते हुए अपनी प्रेमिका सुधा मल्होत्रा के गायन करियर को बढ़ावा देने के लिए वह विवादों में रहे। • उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर जोर दिया किया, वह उनके सभी गीतों को प्रसारित करे। |
पसंदीदा चीजें | |
पसंदीदा कवि | फैज़ अहमद फैज़ |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
विवाह तिथि | वर्ष 1953 |
गर्लफ्रेंड व अन्य मामले | अमृता प्रीतम (कवियित्री) ![]() सुधा मल्होत्रा (अभिनेत्री और गायिका) ![]() |
पत्नी | कोई नहीं |
बच्चे | कोई नहीं |
साहिर लुधियानवी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
क्या साहिर लुधियानवी धूम्रपान करते थे ?: हाँ
क्या साहिर लुधियानवी शराब पीते थे ?: हाँ
उनका जन्म पंजाब स्थित लुधियाना में लाल पुष्पहार हवेली करीमपुरा में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था।
उनकी माता और पिता के बीच कटु संबंध थे, जिसके चलते साहिर के जन्म के पश्चात् दोनों अलग-अलग हो गए। हालांकि, उन्होंने अपनी शिक्षा से समझौता नहीं किया।
वर्ष 1934 में, उनके पिता ने पुनर्विवाह किया और साहिर की मां पर मुक़दमा दायर किया। जिसके चलते साहिर की मां को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा। जबकि उस समय उन्हें साहिर के पिता से सुरक्षा की आवश्यकता थी।
उन्होंने लुधियाना के “सतीश चंदर धवन गवर्नमेंट कॉलेज फॉर बॉयज” में अध्ययन किया, जिसके चलते कॉलेज के सभागार का नाम उनके नाम पर रखा गया।
कॉलेज के दिनों में, वह “गज़ल” और “नज़्मों” के लिए बहुत लोकप्रिय थे। हालांकि, कॉलेज के पहले वर्ष में उन्हें प्रिंसिपल के ऑफिस लॉन में एक महिला सहपाठी के साथ मैत्रीपूर्ण होने के लिए निष्कासित कर दिया गया।
वर्ष 1943 में, वह लाहौर गए, जहां उन्होंने दयाल सिंह कॉलेज में प्रवेश लिया।
वह छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए और वहां उन्होंने वर्ष 1945 में अपनी पहली पुस्तक “तल्खियां” (कविताओं का संग्रह) को प्रकाशित किया।
उन्होंने बहुचर्चित उर्दू पत्रिका शाहकार, अदाब-ए-लतीफ़, सवेरा, इत्यादि में एक संपादक के रूप में कार्य किया।
वह “प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन” के सदस्य भी थे। हालांकि, पाकिस्तान सरकार द्वारा एक गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया जब उन्होंने साम्यवाद को बढ़ावा देने के लिए कई विवादास्पद बयान दिए थे।
वर्ष 1949 में, भारत के विभाजन के बाद साहिर लाहौर से दिल्ली चले गए, क्योंकि वह इस्लाम पाकिस्तान की जगह एक धर्मनिरपेक्ष भारत में रहना पसंद करते थे।
जल्द ही, वह बॉम्बे (अब मुंबई) चले गए और अंधेरी में रहने लगे। वहां उनके पड़ोसियों में गुलजार (कवि और गीतकार) और कृष्ण चंदर (उर्दू कवि) शामिल थे।
1970 के दशक में, उन्होंने मुंबई में एक बंगले का निर्माण किया और उसका नाम परछाईयाँ (छाया) रखा। जहां वह अपनी मृत्यु तक रहे थे।
वर्ष 1944 में, लाहौर के एक मुशायरे में उनकी मुलाकात अमृता प्रीतम से हुई। उस समय अमृता पहले से ही विवाहित थी। अमृता प्रीतम साहिर की नब्ज़ों से बहुत प्रभावित हुई और साहिर की बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई। इसके बाद दोनों में पत्रों का आदान-प्रदान होने लगा और विभिन्न स्थानों पर मिलने लगे।
अमृता ने साहिर के लिए अपने पति को छोड़ दिया। हालांकि, वे कभी-कभी मिलते थे और जब भी वह मिलते थे, दोनों में कुछ खास बातें नहीं हुआ करती थी और ज्यादातर दोनों चुपचाप ही बैठे रहते थे। उन मुलाकातों का ज़िक्र अपनी आत्मकथा “रसीदी टिकट” में किया है। अमृता के मुताबिक जब भी साहिर उनसे मुलाकात करने के लिए आते थे, तो वह धूम्रपान करते थे। एक के बाद एक सिगरेट को पीते रहते थे। जब साहिर वहां से चले जाते थे तो अमृता उन बची हुई सिगरेटों से धूम्रपान करती थी। अपनी आत्मकथा में उन्होंने धूम्रपान की आदत का भी जिक्र किया है।
साहिर के द्वारा बताए गए एक किस्से का ज़िक्र करते हुए अमृता ने कहा था एक बार साहिर ने मुझसे कहा, “जब हम दोनों लाहौर में थे तो मैं अक्सर तुम्हारे घर के पास आता था और तुम्हारे घर के समीप स्थित एक पान की दुकान से पान खाता था या एक सिगरेट पीता था या एक कोल्ड ड्रिंक पीता था। मैं वहां घंटों खड़ा रहता था और तुम्हारी खिड़की की तरफ देखता रहता था।”
अमृता के अलावा साहिर के जीवन में कुछ अन्य महिलाएं भी थीं और सूत्रों के अनुसार वह एक सुधा मल्होत्रा नामक महिला के सम्पर्क में थे। जो पेशे से एक गायक और अभिनेत्री है। हालांकि उन्होंने कभी अमृता से विवाह करने का साहस नहीं किया।
एक कवि होने के अलावा साहिर एक प्रसिद्ध गीतकार भी थे। उन्होंने कई हिट बॉलीवुड गीत जैसे “तू हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा”, “अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम”, “मैं पल दो पल का शायर हूँ”, “चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों”, ” कभी-कभी मेरे दिल में”, “ऐ मेरी ज़ोहराजबीं”, “मेरे दिल में आज क्या है”, “अभी न जाओ छोड़कर”, इत्यादि लिखे।
उन्होंने फिल्म आजादी की राह पर (1949), के 4 गीतों के साथ एक गीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि न ही फिल्म और न ही उनके गानों को कुछ खास सफलता प्राप्त हुई। संगीत निर्देशक एस. डी बर्मन के सहयोग करने के बाद, साहिर ने काफी लोकप्रियता प्राप्त की और जिससे उनकी पहली बड़ी सफलता बाजी (1951) थी। उन्होंने आखिरी फिल्म प्यासा (1957) में एस. डी. बर्मन के साथ कार्य किया।
वह यश चोपड़ा, महेंद्र कपूर और एन. दत्ता के बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे।
साहिर की लेखन शैली उनके समय से बहुत अलग थी। उन्होंने खुदा (भगवान), हुस्न (सौंदर्य), जाम (वाइन) का अपनी ग़जलों और नज़्मों में बहुत कम इस्तेमाल किया। इसकी जगह उन्होंने समाज में नैतिकता के घटते मूल्यों, प्रेम प्रसंग की जगह उपभोक्तावाद के वर्चस्व और समाज के असंवेदनशील मुद्दों जैसे कि युद्ध और राजनीति के बारे में लिखा।
उनके गानों से ये झलकता है कि दुनिया में मोहब्बत के अलावा और भी गंभीर मुद्दे हैं।
साहिर को उनके लेखों के रूप में “bard for the underdog” माना जाता है। उनके द्वारा “सैनिकों को किसी और से युद्ध लड़ने के लिए भेजना”, “कर्ज से किसानों की मृत्यु”, “बेरोजगारी से निराश युवा” और “महिलाओं की सुरक्षा” पर आधारित लेख लिखे गए।
साहिर की कविता में फ़ैज़ की गुणवत्ता शामिल है। फ़ैज की तरह, उन्होंने उर्दू कविता को एक बौद्धिक तत्व दिया।
साहिर आगरा के ताज महल के एक कट्टर आलोचक थे, इसके बारे में उन्होंने लिखा था:
“मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे,
बज़्म- ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या माने।
सबत जिन राहों पर है सतबते शाही के निशां
उसपे उल्फत भरी रूहों का गुज़र क्या माने?”
- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनकी फिल्म प्यासा (1957) में इस्तेमाल होने वाले गीतों से काफी प्रभावित हुए :
“ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के,
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के,
कहाँ है कहाँ है मुहाफ़िज़ खुदी के?
जिन्हें नाज़ है हिंद पर,वो कहाँ हैं?”
साहिर ने अपनी विरासत के बारे में लिखा:
“कल और आयेंगे नगमो की खिलती कलियाँ चुनने वाले,
मुझसे बेहतर कहनेवाले,
तुमसे बेहतर सुननेवाले;
कल कोई उनको याद करे,
क्यूँ कोई मुझको याद करे?
मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यूँ
वक़्त अपना बर्बाद करे?”साहिर लुधियानवी के जीवन पर एक अभिलेखन “मैं साहिर हूं” को सबीर दत्त, चंदर वर्मा और डॉ. सलमान आबिद द्वारा लिखा गया है।
जीवनकाल के अंत में, साहिर अत्याधिक धूम्रपान करने लगे और शराब का सेवन करने लगे। साहिर ने अपने जीवन के इस चरण को निम्नलिखित नब्ज़ों के माध्यम से दर्शाया है:
“मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
बरबादियों का सोग मनाना फ़जूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया”25 अक्तूबर 1980 को, 59 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
वर्ष 2017 में, संजय लीला भंसाली ने साहिर के जीवन पर एक आत्मकथा बनाने की घोषणा की। साहिर की भूमिका निभाने के लिए शाहरुख खान पहली पसंद थे। हालांकि, बाद में उन्होंने अभिषेक बच्चन को चुन लिया।
प्रस्तुत है साहिर के जीवन की एक झलक:
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