Rani Lakshmibai Biography in Hindi | रानी लक्ष्मीबाई जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
Rani Lakshmibai Biography in Hindi | रानी लक्ष्मीबाई जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
जीवन परिचय | |
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वास्तविक नाम | मणिकर्णिका तांबे (जन्म से) |
उपनाम | मनु बाई |
व्यवसाय | रानी |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 19 नवंबर 1828 |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु तिथि | 18 जून 1858 |
मृत्यु स्थल | कोटा की सराय, ग्वालियर, भारत के नज़दीक |
आयु (मृत्यु के समय) | 29 वर्ष |
मृत्यु कारण | शहीद |
राशि | वृश्चिक |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | बिथूर जिला, कन्नपुर (अब कानपुर), उत्तर प्रदेश, भारत |
धर्म | हिन्दू |
जाति | मराठी ब्राह्मण |
शौक/अभिरुचि | घुड़सवारी करना, तीरंदाज़ी करना |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विधवा (मृत्यु के समय तक) |
विवाह तिथि | 19 मई 1842 |
परिवार | |
पति | झाँसी नरेश महाराज गंगाधर राव नेवालकर ![]() |
बच्चे | बेटा - 1 (जन्म के चार महीने बाद मृत्यु) दामोदर राव (दत्तक पुत्र) बेटी - कोई नहीं |
माता-पिता | पिता - मोरोपंत तांबे माता - भागीरथी सापरे |
भाई-बहन | ज्ञात नहीं |
रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म काशी (अब वाराणसी) में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता मोरोपंत तांबे उत्तर प्रदेश के बिथूर जिले की पेशवा अदालत में सलाहकार थे और उनकी मां भागीरथी सपरे एक धार्मिक महिला थीं।
जब रानी लक्ष्मीबाई महज चार साल की थीं, तब उनकी माँ का देहांत हो गया था, जिसके बाद उनके पिता ने ही उनका पालन पोषन किया।
उनके पिता ने रानी को बिना किसी शर्त समर्थन के घुड़सवारी, युद्ध कौशल और तीरंदाज़ी सीखने के लिए प्रेरित किया।
वह घुड़सवारी की बहुत शौकीन थीं, जिसके चलते उनके पास सारंगी, पवन और बादल नामक तीन घोड़े थे।
वह नाना साहिब (उर्फ़ नाना राव पेशवा) और तांत्या टोपे के साथ बड़ी हुईं, जिन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान रानी लक्ष्मीबाई की सहायता की थी।
वर्ष 1842 में, चौदह वर्ष की आयु में उन्होंने चालीस वर्षीय शासक गंगाधर राव नवलकर से विवाह किया, जो झांसी के तत्कालीन महाराजा थे।
पहले, जहां रानी लक्ष्मीबाई शासन करती थीं उसे झांसी की जगह “झैसी” कहा जाता था।
शादी के बाद, उन्हें ‘लक्ष्मीबाई’ नाम दिया गया, जहां ‘लक्ष्मी’ शब्द धन की देवी के नाम को दर्शाता है और ‘बाई’ रानी या महारानी के शीर्षक को दर्शाता है।
ऐसा कहा जाता है कि जिस मंदिर में रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव ने शादी की थी, वह मंदिर झांसी, उत्तर प्रदेश में स्थित है। जिसकी स्थानीय लोगों में अपार श्रद्धा है।
वर्ष 1851 में, उन्होंने दामोदर राव नामक एक बच्चे को जन्म दिया, जो जन्म के चार महीने बाद एक गंभीर बीमारी से मर गया था।
अपने पति की मृत्यु से पहले, उन्होंने गंगाधर राव के चचेरे भाई के बेटे (दत्तक पुत्र) को अपनाया और उसका नाम अपने पहले बेटे के नाम “दामोदर राव” पर रखा।
ऐसा कहा जाता है कि गंगाधर राव अपने बेटे की मृत्यु से पहले ठीक नहीं हो पाए और वर्ष 1853 में खराब स्वास्थ्य के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
रानी लक्ष्मीबाई अपने पति की मृत्यु के समय केवल 25 वर्ष की थीं और उसके बाद वह झांसी की रानी बन गईं। झांसी की रानी बनने के बाद वह अपने बेटे दामोदर राव को झांसी के शासक के रूप में देखना चाहती थीं।
उनके पति की मृत्यु के बाद, अंग्रेजों को झांसी पर कब्जा करने का एक आसान तरीका मिला। अंग्रेजों ने मार्च 1854 में रानी लक्ष्मीबाई को ₹60,000 की वार्षिक पेंशन दी और किला छोड़ने का आदेश दिया।
ब्रिटिश भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल, लॉर्ड डलहौजी ने हड़पने की नीति (लैप्स सिद्धांत) को लागू किया था और इस नीति के अनुसार, दामोदर राव के पास झांसी के सिंहासन पर कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि वह गंगाधर राव का एक दत्तक पुत्र था।
सूत्रों के मुताबिक, 8 जून 1854 को, ऑस्ट्रेलियाई मूल के वकील जॉन लैंग ने लॉर्ड डलहौजी की हड़पने की नीति (लैप्स सिद्धांत) के खिलाफ याचिका दायर की थी।
वर्ष 2009 में, फारसी भाषा में लिखे गए एक पत्र को इंग्लैंड की ब्रिटिश लाइब्रेरी में पाया गया था, जिसे रानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं लिखा था। सूत्रों के अनुसार, पत्र में, रानी ने लॉर्ड डलहौजी की धोखाधड़ी के बारे में उल्लेख किया है।
ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए उन्होंने 14000 सिपाहियों की सेना को इकट्ठा किया था, जिसमें तांत्या टोपे, नाना राव पेशवा, गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बख्श, दीवान रघुनाथ सिंह, दीवान जवाहर सिंह, इत्यादि कई बहादुर योद्धा शामिल थे और इसके अतिरिक्त महिला योद्धाओं में जलकारी बाई, सुंदर- मुंदर, इत्यादि महिला योद्धा शामिल थीं।
वर्ष 1857 में, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया और क्रोध में वक्तव्य दिया “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी”। उसके बाद उन्होंने बड़ी बहादुरी से अपने बेटे के साथ (दामोदर राव ने अपनी पीठ पर बाँधकर) अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
17 जून को, जनरल स्मिथ द्वारा आदेशित ब्रिटिश सैनिकों का एक बड़ा दल कोटा की सेराई में रानी की सिपाही सेना के साथ लड़ा। सूत्रों के मुताबिक, अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ने के बाद आखिर में, वह अपनी चोटों से काफी घायल हो गई। हालांकि, रानी चाहती थी कि उनके शरीर को ब्रिटिश सैनिकों द्वारा नहीं खोजा जाए, इसलिए रानी की सेना के कुछ लोग उन्हें पास के गंगादास मठ में ले गए, जहां उनकी मृत्यु के बाद संस्कार किया गया। मृत्यु के समय वह 29 साल की थीं।
उनकी मृत्यु के बाद, युद्ध की ब्रिटिश रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ ब्रिटिश सेना अधिकारी ह्यूग रोज ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे प्रभावशाली चरित्र, सुंदर और एक कर्मठ नेता के रूप में वर्णित किया।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में स्थित उनके मृत्यु स्थल को समाधि स्थल में परिवर्तित किया गया, जो ‘रानी लक्ष्मीबाई समाधि स्थल’ के नाम से प्रसिद्ध है।
मई 2010 को, रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान पर एक पोस्टकार्ड जारी किया गया, जिस पर एक रानी की तस्वीर छपी थी। वास्तव में, यह तस्वीर रानी लक्ष्मीबाई की नहीं बल्कि भोपाल की रानी सुल्तान जहां बेगम की थी, तब से वह तस्वीर बहुत वायरल हुई।
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ कविता लेखन की विधा में एक मिसाल मानी जाती है। यह गीत हमेशा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति देशभक्ति प्रदान करता है और यह गीत पहली बार स्वतंत्रता आंदोलन के 150 वर्षों के जश्न पर संसद में प्रसिद्ध शास्त्रीय भारतीय गायक शुभा मुद्गल द्वारा गाया गया था, जिसका वीडियो यहां दिया गया है:
यहां एक वीडियो है, जो झांसी के किले के प्रत्येक कोने को दिखाता है:
रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर कई फ़िल्में बनाई गई हैं, जो उनके जीवन को दर्शाती हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं जैसे कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (2012), झांसी की रानी (1953), इत्यादि।
वर्ष 2018 में, ‘मणिकर्णिका’ नामक एक बॉलीवुड फिल्म बनाई गई थी, जो रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से प्रेरित थी, जिसमें कंगना रनौत प्रमुख भूमिका निभाई है।
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