Prithviraj Chauhan Biography in Hindi | पृथ्वीराज चौहान जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
Prithviraj Chauhan Biography in Hindi | पृथ्वीराज चौहान जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
जीवन परिचय | |
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वास्तविक नाम | पृथ्वीराज चौहान |
उपनाम | भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा |
व्यवसाय | क्षत्रिय |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 1 जून 1163 (आंग्ल पंचांग के अनुसार) |
जन्मस्थान | पाटण, गुजरात, भारत |
मृत्यु तिथि | 11 मार्च 1192 (आंग्ल पंचांग के अनुसार) |
मृत्यु स्थल | अजयमेरु (अजमेर), राजस्थान |
आयु (मृत्यु के समय) | 28 वर्ष |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | सोरों शूकरक्षेत्र, उत्तर प्रदेश (वर्तमान में कासगंज, एटा) कुछ विद्वानों के अनुसार जिला राजापुर, बाँदा (वर्तमान में चित्रकूट) |
धर्म | हिन्दू |
वंश | चौहानवंश |
परिवार | पिता - सोमेश्वर माता - कर्पूरदेवी भाई - हरिराज (छोटा) बहन - पृथा (छोटी) |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी | • जम्भावती पडिहारी • पंवारी इच्छनी • दाहिया • जालन्धरी • गूजरी • बडगूजरी • यादवी पद्मावती • यादवी शशिव्रता • कछवाही • पुडीरनी • शशिव्रता • इन्द्रावती • संयोगिता गाहडवाल ![]() |
बच्चे | बेटा - गोविन्द चौहान बेटी - कोई नहीं |
पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
पृथ्वीराज चौहान का जन्म चौहान वंश के क्षत्रिय राजा सोमेश्वर चौहान और कर्पूरदेवी के घर हुआ था।
वह उत्तर भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर (अजयमेरु ) और दिल्ली के शासक थे।
विभिन्न मतों के अनुसार, पृथ्वीराज के जन्म के बाद पिता राजा सोमेश्वर ने अपने पुत्र के भविष्यफल को जानने के लिए विद्वान् पंडितों को बुलाया। जहां पृथ्वीराज का भविष्यफल देखते हुए पंडितों ने उनका नाम “पृथ्वीराज” रखा।
बाल्यावस्था से ही उनका बड़ा वैभवपूर्ण वातावरण में पालन-पोषण हुआ।
पांच वर्ष की आयु में, पृथ्वीराज ने अजयमेरु (वर्तमान में अजमेर) में विग्रहराज द्वारा स्थापित “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” से (वर्तमान में वो विद्यापीठ ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नामक एक ‘मस्जिद’ है) से शिक्षा प्राप्त की।
सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ
सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ में उन्होंने शिक्षा के अलावा युद्धकला और शस्त्र विद्या की शिक्षा अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी।
15 वर्ष की कम उम्र में पृथ्वीराज ने अपने राज्य का सिंघासन संभाला था।
वह छह भाषाओँ में निपुण थे, जैसे – संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा। इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था।
महान कवि चंदबरदाई की काव्य रचना “पृथ्वीराज रासो” में उल्लेख किया गया है कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने, अश्व व हाथी नियंत्रण विद्या में भी निपुण थे।
महान कवि चंदबरदाई
पृथ्वीराज की सेना में घोड़ों की सेना का बहुत अधिक महत्व था, लेकिन फिर भी हस्ति (हाथी) सेना और सैनिकों की भी मुख्य भूमिका रहती थी। जिसके चलते पृथ्वीराज की सेना में 70,000 घुड़सवार सैनिक थे। जैसे-जैसे पृथ्वीराज की विजय होती गई, वैसे-वैसे सेना में सैनिकों की वृद्धि होती गई। नारायण युद्ध में पृथ्वीराज की सेना में केवल 2,00,000 घुड़सवार सैनिक, पाँच सौ हाथी एवं बहुत से सैनिक थे।
पृथ्वीराज की सेना
पृथ्वीराज ने युद्धनीति के आधार पर दिग्विजय अभियान चलाया, जिसमें उन्होंने वर्ष 1177 में भादानक देशीय को, वर्ष 1182 में जेजाकभुक्ति शासक को और वर्ष 1183 में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया था।
जब पृथ्वीराज की वीरता की प्रशंसा चारो दिशाओं में गूंज रही थी। तब संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता का और सौन्दर्य का वर्णन सुना। उसके बाद वह पृथ्वीराज को प्रेम करने लगी और दूसरी ओर संयोगिता के पिता जयचन्द ने संयोगिता का विवाह स्वयंवर के माध्यम से करने की घोषणा कर दी। जयचन्द ने अश्वमेधयज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के बाद संयोगिता का स्वयंवर होना था। जयचन्द अश्वमेधयज्ञ करने के बाद भारत पर अपने प्रभुत्व की इच्छा रखता था। जिसके विपरीत पृथ्वीराज ने जयचन्द का विरोध किया। अतः जयचन्द ने पृथ्वीराज को स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया और उसने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की प्रतिमा स्थापित कर दी। दूसरी ओर जब संयोगिता को पता लगा कि, पृथ्वीराज स्वयंवर में अनुपस्थित रहेंगे, तो उसने पृथ्वीराज को बुलाने के लिये दूत भेजा। संयोगिता मुझसे प्रेम करती है, यह सब जानकर पृथ्वीराज ने कन्नौज नगर की ओर प्रस्थान किया।
स्वयंवरकाल के समय जब संयोगिता हाथ में वरमाला लिए उपस्थित राजाओं को देख रही थी, तभी उनकी नजर द्वार पर स्थित पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी। उसी समय संयोगिता मूर्ति के समीप जाती हैं और वरमाला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना देती हैं। उसी क्षण घोड़े पर सवार पृथ्वीराज राज महल में आते हैं और सिंहनाद के साथ सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकारने लगते हैं। पृथ्वीराज संयोगिता को ले कर इन्द्रपस्थ (आज दिल्ली का एव भाग है) की ओर निकल पड़े।
पृथ्वीराज चौहान संयोगिता के स्वयंवर के दौरान
न्यायपूर्ण शासन करते हुए राजा पृथ्वीराज एक बार राजसभा में बैठे थे, उसी समय चन्द्रराज नामक कोई राजा पृथ्वीराज के सम्मुख उपस्थित होता है। वह चन्द्रराज कोई और नहीं पश्चिम दिशा के राजाओँ का प्रमुख था। वह राजा काफी भयभीत था, क्योंकि उन्हें घोरी नाम के कुशासक से डर लगता था जो साम्राज्य विस्तार की नीति के कारण अन्य प्रदेशों पर आक्रमण कर रहा था। तभी पृथ्वीराज ने सभी के लटके हुए मुख देख कर दुःख का कारण पुछा। चन्द्रराज बोले, “हे राजन्! पश्चिम दिशा से घोरी नामक कुशासक अन्य साम्राज्यों को पराजित करते हुए बहुत से राज्यों का सर्वनाश कर रहा है और जिस भी राज्य पर आक्रमण किया, उस राज्य के सभी नगरों को लुट लिया गया और मन्दिरों को अग्नि के हवाले कर दिया गया। राज्यों की सभी स्त्रियों के बलात्कार किए गए, इस क्रूरता के कारण उन महिलाओं की स्थिति अति दयनीय हो चुकी है। वो जिस किसी भी राजपूत को सशस्त्र देखता है, उसे मृत्युदंड दे देता है।”
घोरी किसी भी प्रकार से पृथ्वीराज को ‘इस्लाम्’ धर्म स्वीकार ने को विवश करना चाहते थे। अतः वह पृथ्वीराज के साथ सह राज नैतिक सम्बन्ध स्थापित करने को तैयार हो गए। परन्तु पृथ्वीराज ‘इस्लाम’ धर्म को अस्वीकार करते हुए दृढ संकल्प लिया था।
घोरी के आदेश पर पृथ्वीराज के मन्त्री प्रतापसिंह ने पृथ्वीराज को ‘इस्लाम’ धर्म को स्वीकारने के लिए समझाया और पृथ्वीराज ने प्रतापसिंह को कहा “मैं घोरी का वध करना चाहता हूँ”। पृथ्वीराज ने आगे कहा कि, “मैं शब्दवेध बाण चलाने में सक्षम हूँ। मेरी उस विद्या का मैं प्रदर्शन करने के लिए तैयार हूँ। तुम किसी भी प्रकार घोरी को मेरी विद्या का प्रदर्शन देखने के लिए तैयार कर दो। तत्पश्चात् राजसभा में शब्दवेध बाण के प्रदर्शन के समय घोरी कहाँ स्थित है ये मुझे बता देना मैं शब्दवेधी बाण से घोरी का वध कर अपना प्रतिशोध ले लूँगा।”
परन्तु प्रतापसिंह ने पृथ्वीराज की सहयता करने की बजाय पृथ्वीराज की योजना के बारे में घोरी को सूचित कर दिया। पृथ्वीराज की योजना के विषय में जब घोरी ने सुना, तो उसके मन में क्रोध उत्पन्न हुआ। घोरी ने कल्पना भी नहीं की थी कि, कोई भी अंधा व्यक्ति आवाज़ सुनकर लक्ष्य भेदन करने में सक्षम हो सकता है। परन्तु मन्त्री ने जब बार बार पृथ्वीराज की निपूणता के विषय में कहा, तब घोरी ने शब्दवेध बाण का प्रदर्शन देखना चाहा। घोरी ने अपने स्थान पर लोहे की एक मूर्ति स्थापित कर दी थी। तत्पश्चात् प्रतापसिंह ने सभा में पृथ्वीराज के हाथ में धनुष्काण्ड (धनुष और तीर) दिया। घोरी ने जब लक्ष्य भेदने का आदेश दिया, तभी पृथ्वीराज ने बाण चला दिया और वह बाण उस मूर्ति को जा लगा, जिससे मूर्ति के दो भाग हो गए। इस कारण पृथ्वीराज का यह प्रयास भी असफल रहा।
उसके बाद क्रोधित घोरी ने पृथ्वीराज की हत्या करने का आदेश दे दिया। जहां एक मुस्लिम सैनिक ने रत्नजडित एक तलवार से पृथ्वीराज की हत्या कर दी। इस प्रकार अजयमेरु (अजमेर) में पृथ्वीराज की जीवनलीला समाप्त हो गई। अंत में, उनका अंतिम संस्कार अजयमेरु में ही उनके छोटे भाई हरिराज के हाथों हुआ।
पृथ्वीराज चौहान के शासन काल में जारी की गई मुद्रा।
पृथ्वीराज चौहान के द्वारा जारी मुद्रा
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का राजस्थान स्थित अजमेर में समाधि स्थल भी स्थापित किया गया है।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान समाधि स्थल
31 दिसम्बर 2000 को, भारत सरकार द्वारा पृथ्वीराज चौहान की याद में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।
पृथ्वीराज चौहान स्मारक डाक टिकट
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One Response
Pruthank check sources
Your story is not right prithvi raj killed muhammad ghori in Afghanistan successfully and his death had not in ajmer his death had in Afghanistan the history researcher already proved
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