Mahatma Gandhi Biography in Hindi | महात्मा गांधी जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
Mahatma Gandhi Biography in Hindi | महात्मा गांधी जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
जीवन परिचय | |
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वास्तविक नाम | मोहनदास करमचन्द गांधी |
उपनाम | महात्मा, राष्ट्र पिता और बापू |
व्यवसाय | राजनीतिज्ञ, वकील, शांति दूत, दार्शनिक |
प्रमुख कार्य | • दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी को अन्य भारतीयो के साथ रंगभेद का सामना करना पड़ा। गांधी जी ने भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार का विरोध किया और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए अपने दक्षिण अफ्रीका के प्रवास को अग्रसर कर दिया। उन्होंने उस बिल का भी विरोध किया, जिसके तहत भारतियों को वोट देने का अधिकार नहीं था। गांधी जी ने ब्रिटिश उपनिवेश के तत्कालीन सेक्रेटरी Joseph Chamberlain से बिल पर पुनः विचार करने का अनुरोध भी किया। • वर्ष 1894 में गांधी जी ने नटल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की और इस संगठन के माध्यम से उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों को एकीकृत करने का कार्य किया। • वर्ष 1906 में, जब ट्रांसवाल सरकार ने एक अधिनियम पारित किया, जो समस्त एशियाई पुरुषों को अपना पंजीकरण करने के लिए बाध्य करता था। तब गांधी जी ने उस अधिनियम का पूर जोर विरोध किया था। गांधी जी ने अपने विरोध का हथियार सत्याग्रह को बनाया जो कि विरोध करने का एक अहिंसात्मक तरीका है। उन्होंने सभी भारतीयों से अधिनियम का विरोध करने की अपील की। भारतीय समुदाय ने गांधी जी के सत्याग्रह का पूरा समर्थन किया और सात वर्षों तक विरोध करने के उपरांत दक्षिण अफ्रीका के नेता Jan Christiaan Smuts ने आख़िरकार गांधी जी के साथ समझौता कर लिया। • 1915 में भारत लौटने पर गांधी जी ने भारतीय स्वतंत्रता में एक प्रमुख भूमिका निभाई, गांधी जी ने 1920 में कांग्रेस का नेतृत्व संभाला और 26 जनवरी 1930 को गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत की आजादी की घोषणा कर दी। हालांकि अंग्रेजों ने कांग्रेस के साथ समझौता वार्ता शुरू कर दी। इसके परिणामस्वरूप 1930 के अंत में कांग्रेस ने प्रांतीय सरकार बनने में अहम भूमिका निभाई। • वर्ष 1918 में, गांधी जी ने चंपारण और खेड़ा आंदोलन शुरू किया। • वर्ष 1930 में, ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर कर लगाया गया, जिसके विरोध में महात्मा गांधी जी ने दांडी मार्च आंदोलन की शुरुआत की। • 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने "भारत छोड़ो आंदोलन" की आंदोलन शुरुआत की। बॉम्बे के गोवाया टैंक मैदान में अपने "अंग्रेजों भारत छोड़ो" भाषण के दौरान गांधी जी ने भारतीयों को एक नारा दिया "करो या मरो" (Do or Die)। |
प्रसिद्ध विचार | • आप तब तक यह नहीं समझ पाते कि आपके लिए कौन महत्वपूर्ण है जब तक आप उन्हें वास्तव में खो नहीं देते। • काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है। • दुनिया में ऐसे लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकते सिवाय रोटी के रूप में। • जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह पहले स्वयं में लाए। • कायरता से कहीं ज्यादा अच्छा है, लड़ते - लड़ते मर जाना। • अपने प्रयोजन में दृढ विश्वास रखने वाला एक सूक्ष्म शरीर इतिहास के रुख को बदल सकता है। • निरन्तर विकास जीवन का नियम है और जो व्यक्ति स्वयं को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो स्वयं को गलत स्थिति में पहुंचा देता है। • सत्य बिना जन समर्थन के भी खड़ा रहता है, वह आत्मनिर्भर है। • मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है, सत्य मेरा भगवन है, अहिंसा उसे पाने का साधन है। • पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। |
शारीरिक संरचना | |
लम्बाई | से० मी०- 168 मी०- 1.68 फीट इन्च- 5’ 6” |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | सफ़ेद |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 2 अक्टूबर 1869 |
आयु (30 जनवरी 1948 के अनुसार) | 78 वर्ष |
जन्मस्थान | पोरबंदर राज्य, काठियावार एजेंसी, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु तिथि | 30 जनवरी 1948 |
मृत्यु स्थल | नई दिल्ली, भारत |
मृत्यु का कारण | गोली लगने से हत्या |
समाधि स्थल | राज घाट, दिल्ली (लेकिन उनकी राख विभिन्न भारतीय नदियों में प्रवाहित है) |
राशि | तुला |
हस्ताक्षर | ![]() |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गृहनगर | पोरबंदर, गुजरात, भारत |
स्कूल/विद्यालय | राजकोट में एक स्थानीय स्कूल अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट अहमदाबाद में एक हाई स्कूल |
महाविद्यालय/विश्वविद्यालय | सामलदास कॉलेज, भावनगर राज्य (अब, जिला भावनगर, गुजरात), भारत इनर टेम्पल, लंदन यूसीएल (UCL) फैकल्टी ऑफ लॉ, यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन से |
शैक्षिक योग्यता | बैरिस्टर (Barrister-at-law) |
परिवार | पिता - करमचंद गांधी, दीवान (मुख्यमंत्री) पोरबंदर राज्य के ![]() माता- पुतलीबाई गांधी (गृहणी) ![]() भाई- लक्ष्मीदास करमचंद गांधी ![]() करसनदास गांधी बहन- रलियताबेन गांधी ![]() |
धर्म | हिन्दू |
जाति | मोध बनिया |
शौक/अभिरुचि | पुस्तकें पढ़ना, संगीत सुनना और यात्रा करना |
विवाद | • वर्ष 2016 में, घाना में "कथित भूतपूर्व नस्लवादी टिप्पणी" के कारण महात्मा गांधी की एक प्रतिमा को मुख्य विश्वविद्यालय से हटा देने की सरकार द्वारा घोषणा की गई। यह कदम व्याख्याताओं और छात्रों के एक समूह के द्वारा महात्मा गांधी के खिलाफ अभियान चलाने के लिए उठाया गया था, जिनमें से कुछ ने यह मांग की मूर्ति को वापस भारत लौटा दिया जाए। यह मूर्ति दोनों देशों के बीच दोस्ती के प्रतीक के रूप में, जून महीने में भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा अकरा स्थित घाना विश्वविद्यालय में स्थापित की गई थी। विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा दावा किया गया था कि गांधी ने काले अफ्रीकी लोगों के खिलाफ जातिवाद टिप्पणी की थी और काले भारतीय अफ्रीकन को "क्रूर", "कच्चा" और "आलोक" के रूप में चिह्नित किया था। गांधी ने डरबन स्थित डाकघर में काले और भारतीयों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वारों की मांग की थी। • 1906 में, गांधी ने यौन जीवन से दूर रहने के लिए शपथ ली। गांधी जी ने खुद को ब्रह्मचारी होने के लिए अपने ऊपर कई परीक्षण किए। उन्होंने एक आध्यात्मिक प्रयोग के भाग के रूप में अपनी भतीजी मनुबेन को अपने बिस्तर में नग्न सोने के लिए कहा, जिसमें गांधी स्वयं "ब्रह्मचारी" के रूप में अपना परीक्षण कर सकें। इस घटना के बाद कई अन्य युवा महिलाओं और लड़कियों ने भी उनके इन प्रयोगों का हिस्सा बनने के लिए उनके साथ हमबिस्तर हुईं। गांधी के इन प्रयोगों ने अधिकांश भारतीय राजनीतिज्ञों और लोगों की मानसिकता को प्रभावित किया। |
पसंदीदा चीजें | |
पसंदीदा व्यक्ति | गौतम बुद्ध, हरिश्चंद्र और उनकी मां पुतलीबाई |
पसंदीदा लेखक | लियो टॉल्स्टॉय ![]() |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी | कस्तूरबा गांधी ![]() |
बच्चे | बेटे : हरिलाल ![]() मणिलाल रामदास देवदास ![]() बेटी : लागू नहीं |
महात्मा गांधी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
क्या महात्मा गांधी धूम्रपान करते हैं ? नहीं (युवावस्था में करते थे)
क्या महात्मा गांधी शराब पीते हैं ? नहीं
मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म पश्चिमी भारत में गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर (जिसे सुदामापुरी के नाम से भी जाना जाता है) नामक स्थान पर एक हिंदू मोध बनिये के परिवार में हुआ था।
उनके पिता करमचंद गांधी की शैक्षणिक योग्यता सिर्फ प्राथमिक स्तर की थी। फिर भी वह पोरबंदर राज्य के एक कुशल मुख्यमंत्री रहे। पहले, उन्हें राज्य प्रशासन में क्लर्क के रूप में तैनात किया गया था।
पोरबंदर के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, करमचंद ने 4 बार शादी की (पहली दो पत्नियों की मृत्यु 1-1 पुत्री को जन्म देने के बाद हो गई थी) करमचंद की तीसरी शादी से कोई संतान नहीं हुई। इसके बाद 1857 में, करमचंद का चौथा विवाह पुतलीबाई (1841-1891) के साथ हुआ।
महात्मा गांधी जी की मां, पुतलीबाई, जुनागढ़ के प्रणामी वैष्णव परिवार से थीं।
मोहनदास (महात्मा गांधी) के जन्म से पहले करमचंद और पुतलीबाई के तीन बच्चे थे – बेटा लक्ष्मीदास (1860-1914), बेटी रालियताबेन (1862-1960) और एक बेटा करनदास (1866-1913) ।
2 अक्टूबर 1869 को, पोरबंदर के एक बिना खिड़की वाले अंधेरे कमरे में, पुतलीबाई ने अपनी अंतिम संतान मोहनदास (महात्मा गांधी) को जन्म दिया।
गांधी जी की बहन के अनुसार, “गांधी शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, उन्हें घूमना बहुत पसंद था, और अपने खाली समय में वह कुत्तों के कानों के साथ खेलते थे।”
राजा हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की पारंपरिक भारतीय कहानियों का गांधीजी के बचपन पर काफी प्रभाव पड़ा। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि, “मैंने बचपन से ही हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व को अपने जीवन में ढाला है, और इन कहानियों से ही मैंने सच्चाई, प्रेम और बलिदान की प्रेरणा प्राप्त की है।”
महात्मा गांधी की मां एक पवित्र महिला थीं, वह अपनी माँ से बहुत प्रभावित थे। वह दैनिक प्रार्थनाओं के बिना कभी भी भोजन ग्रहण नहीं करती थीं और लगातार दो तीन उपवास रखना उनके लिए सामान्य था। शायद, उनकी मां के यही गुण थे जिन्होंने गांधी जी को लंबे समय तक उपवास के लिए प्रेरित किया था।
वर्ष 1874 में, उनके पिता करमचंद ने पोरबंदर को छोड़ दिया और राजकोट में उन्हें शासक (ठाकुर साहिब) के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया।
9 वर्ष की आयु में, उन्होंने राजकोट में अपने घर के पास एक स्थानीय स्कूल में प्रवेश लिया।
11 वर्ष की आयु में गांधी जी ने राजकोट के एक हाई स्कूल में प्रवेश लिया। जहां उनका स्वभाव शर्मीला और प्रदर्शन औसत छात्र के रूप में रहा।
हाई स्कूल के दौरान उनकी दोस्ती एक मुस्लिम लड़के से हुई , जिसका नाम शेख मेहताब था। शेख मेहताब का व्यक्तित्व काफी आश्चर्यजनक था। एक दिन शेख मेहताब ने मोहनदास को ऊंचाई बढ़ाने के लिए मांस के सेवन के लिए आग्रह किया और उन्हें वेश्यालय ले गया। वह दिन मोहनदास के लिए काफी परेशानी भरा रहा। जिसके चलते मोहनदास का मेहताब के साथ अनुभव अच्छा नहीं रहा और परिणामस्वरूप उन्होंने मेहताब की संगति से दरकिनार कर लिया।
मई 1883 में, महज 13 साल की उम्र में उनका विवाह 14 वर्षीय कस्तूरबा माखनजी कपाड़िया (जिन्हें कस्तुरबा और बा कहकर भी पुकारा जाता था) से हुआ।
अपने विवाह के दिन को याद करते हुए महात्मा गांधी जी ने कहा कि,” मुझे शादी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था, हमारे लिए शादी का मतलब सिर्फ नए कपड़े पहनना, मिठाई खाना और रिश्तेदारों के साथ मौज – मस्ती करना है।” उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि अपनी पत्नी के प्रति उनके अंदर वासना की भावनाएं भी उत्पन्न होती थीं।वर्ष 1885 में, उनके पिता का निधन हो गया, उस समय महात्मा गांधी 16 वर्ष के थे और उसी वर्ष, उनके पहले बच्चे की भी मृत्यु हो गई थी, वह बच्चा कुछ ही दिन जीवत रहा था। बाद में, उनके घर चार बच्चों का जन्म हुआ : हरिलाल (जन्म तिथि 1888), मणिलाल (जन्म तिथि 1892), रामदास (जन्म तिथि 1897), और देवदास (जन्म तिथि 1900)।
नवंबर 1887 में, महज 18 साल की उम्र में, उन्होंने अहमदाबाद के हाई स्कूल से स्नातक की डिग्री हासिल की।
जनवरी 1888 में, महात्मा गांधी ने भावनगर स्थित सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया। हालांकि, कुछ समय बाद उन्होंने कॉलेज को छोड़ दिया और पोरबंदर चले गए।
10 अगस्त 1888 को, माविजी दवे जोशीजी (एक ब्राह्मण पुजारी और परिवार मित्र) की सलाह पर, मोहनदास ने लंदन में लॉ स्टडीज के उद्देश्य से पोरबंदर को छोड़ दिया और बॉम्बे चले गए। लोगों ने उन्हें चेतावनी दी कि इंग्लैंड में उन्हें मांस खाने और शराब पीने के लिए उकसाया जाएगा, गांधी जी ने अपनी मां को एक वचन दिया, कि वह शराब, मांस और महिलाओं से दूर रहेंगे।
4 सितंबर 1888 को, वह मुंबई से लंदन के लिए रवाना हुए।
महात्मा गांधी जी ने बैरिस्टर बनने के लिए, उन्होंने लंदन स्थित इनर टेम्प्लेट (Inner Temple) में दाखिला लिया और वहां कानून और न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। गांधी जी का बचपन वाला शर्मीलापन लंदन में भी जारी रहा। हालांकि, उन्होंने धीरे-धीरे लंदन में पाश्चात्य संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया था जैसे :- अंग्रेजी बोलना, क्लबों में जाना, पाश्चात्य नृत्य सीखना इत्यादि।
लंदन में उन्हें “शाकाहारी सभा” (Vegetarian Society) में शामिल किया गया था और उन्हें सभा की कार्यकारी समिति के सद्स्य के रूप में चुना गया था। उन शाकाहारियों में से समिति के ज्यादातर लोग थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) (1875 में न्यूयॉर्क शहर में स्थापित) के सद्स्य थें। उन्होंने मोहनदास गांधी को थियोसोफिकल सोसाइटी (Theosophical Society) में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया।
12 जनवरी 1891 को, उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की।
जून 1891 में, 22 वर्ष की उम्र में, मोहनदास गांधी को उच्च न्यायालय और ब्रिटिश बार में नामांकन के लिए बुलाया गया था। परन्तु उसी वर्ष वह भारत लौट आए, जहां उन्हें पता चला कि लंदन में रहने के दौरान उनकी मां की मृत्यु हो गई थी।
भारत लौटने पर गांधी जी की मुलाकात रायचंदभाई (जिन्हे गांधीजी के गुरु के रूप में जाना जाता है) से हुई।
मोहनदास गांधी ने बॉम्बे से कानून का अभ्यास करना प्रारंम्भ किया, हालांकि उनमे गवाहों की पारस्परिक जाँच के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से रणनीति का अभाव था। जिसके कारण वह राजकोट लौट आए। जहां उन्होंने दावेदारों के लिए याचिकाओं का प्रारूप तैयार करके मामूली जीवन जीना शुरू किया। हालांकि, एक ब्रिटिश अधिकारी के साथ विवाद होने के कारण उन्हें अपने काम को बीच में ही बंद करना पड़ा।
वर्ष 1893 में, मोहनदास गांधी की मुलाकात एक मुस्लिम व्यापारी दादा अब्दुल्ला से हुई। जिसका दक्षिण अफ्रीका में बहुत बड़ा पोत परिवहन (shipping) का व्यापार था। अब्दुल्ला का चचेरा भाई जोहान्सबर्ग में रहता था, जिसे एक वकील की जरुरत थी। अब्दुल्ला ने उन्हें लगभग 9000 रुपए और अधिक यात्रा खर्च देने पेशकश की, जिसे उन्होंने खुशी से स्वीकार किया।
अप्रैल 1893 में, 23 साल की उम्र में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका (जहां उन्होंने 21 साल बिताते हुए, अपने नैतिक मूल्यों और राजनीतिक विचारों को विकसित किया) की यात्रा पर गए।
जून 1893 में, पीटरमरेट्ज़बर्ग स्टेशन (Pietermaritzburg station) पर मोहनदास गांधी को ट्रेन की प्रथम श्रेणी की टिकट होने के बावजूद ट्रेन के वैन डिब्बे में यात्रा करने का आदेश दिया गया था, जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें ट्रेन से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। और उन्हें पुरी रात कंपकपाती ठंड में प्लेटफार्म पर ही गुजारनी पड़ी।
मई 1894 में वह अब्दुल्ला केस के फैसले के लिए दक्षिण अफ्रीका आए।
वर्ष 1894 में, दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ भेदभाव किया जा रहा था, जिसके चलते गांधी जी ने भारतीयों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक संगठन का प्रस्ताव रखा और भारतीयों को रंगभेद से लड़ने के लिए 22 अगस्त 1894 को गांधी जी ने “नटलाल भारतीय कांग्रेस संगठन” का निर्माण किया।
अक्टूबर 1899 में, बोअर युद्ध के बाद, मोहनदास गांधी एम्बुलेंस शाखा (Ambulance Corps) में शामिल हुए। जहां उन्होंने 1100 भारतीय स्वयंसेवकों के साथ मिलकर बोअर्स के खिलाफ ब्रिटिश लड़ाकू सैनिकों की सहायता की थी। जिसके लिए गांधी जी और 37 अन्य भारतीयों को The Queen’s South Africa Medal से नवाजा गया था।
11 सितंबर 1906 को, पहली बार, उन्होंने ट्रांसवाल सरकार के खिलाफ सत्याग्रह (एक अहिंसक विरोध) अपनाया, जिसमें नए कानून के आधार पर भारतीय और चीनी लोगों को अपनी कॉलोनियों का पंजीकरण करवाना आवश्यक था, अन्यथा उन्हें वहां रहने की अनुमति नहीं थी। इसलिए गांधी जी ने ट्रांसवाल सरकार के खिलाफ सत्याग्रह किया।
रूसी शांतिवादी लियो टॉल्स्टॉय द्वारा तारकनाथ दास को लिखे गए, एक पत्र से प्रेरित होकर महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की विचारधारा को अपनाया और 1915 में भारत पर इस विचारधारा को लागू किया।
वर्ष 1909 में, 13 से 22 नवंबर के बीच S.S.Kildonan Castle नामक समुद्री जहाज द्वारा दक्षिण अफ्रीका से लंदन की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने गुजराती भाषा में “हिन्द स्वराज” नामक पुस्तक लिखी।
वर्ष 1910 में, उन्होंने जोहान्सबर्ग के पास “टॉल्स्टॉय फार्म” (एक आदर्शवादी समुदाय) की स्थापना की।
9 जनवरी 1915 को गांधी जी भारत लौटे और वर्ष 2003 से वह दिन (9 जनवरी 1915) भारत में प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भारत आने पर महात्मा गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। जहां उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले से हुई, जिन्होंने गांधी जी को भारतीय मुद्दों, राजनीति और भारतीय लोगों की समस्याओं से अवगत करवाया।
मई 1915 में, उन्होंने अहमदाबाद के कोचरब सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
अप्रैल 1917 में, चंपारण के एक स्थानीय जमींदार राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर गांधी जी ने चंपारण का दौरा किया। जहां उन्होंने नील की खेती कर रहे किसानों के साथ हो रहे उत्पीड़न को करीब से देखा। महात्मा गांधी ने चंपारण के किसानों को उनका हक दिलाने के लिए अंग्रेजों का पुर जोर विरोध किया, अंग्रेजों के खिलाफ गांधी जी का यह पहला विरोध था।
वर्ष 1918 में, “खेड़ा सत्याग्रह” गुजरात के खेड़ा जिले में ब्रिटिश सरकार के द्वारा किसानों पर कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह हुआ। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा के आधार पर वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था। इस सत्याग्रह के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण सा था परन्तु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इसका महत्व चंपारन के सत्याग्रह से कम नहीं था।
8 अक्टूबर 1919 में, गांधी जी के संपादन में “यंग इंडिया” समाचार पत्र का पहला प्रकाशन किया गया था।
वर्ष 1919 में, प्रथम विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद, महात्मा गांधी ने तुर्क साम्राज्य का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में मुसलमानों से राजनीतिक सहयोग मांगा।
वर्ष 1920-1921 के दौरान, गांधी जी ने खिलाफत और गैर-सहकारिता आंदोलन का नेतृत्व किया।
फरवरी 1922 में, चौरी-चौरा घटना के बाद, गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें यरवदा जेल ले जाया गया, जहां उन्हें मार्च 1924 तक रखा गया।
17 सितंबर 1924 को, गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन का उपवास रखा।
अपने पूरे राजनीतिक जीवन में गांधी जी ने सिर्फ एक ही बार किसी कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की। यह अधिवेशन दिसंबर 1924 को बेलगाम में हुआ था।
दिसंबर 1929 में, लाहौर में कांग्रेस की एक खुली सभा में गांधी जी ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा था।
12 मार्च 1930 को, उन्होंने प्रसिद्ध दांडी मार्च आंदोलन (अहमदाबाद से दांडी तक 388 किलोमीटर) की शुरुआत की। यह आंदोलन नमक कानून तोड़ने के लिए शुरू किया गया था।
वर्ष 1930 में, प्रसिद्ध पत्रिका “टाइम” ने महात्मा गांधी को “Man of the Year” के ख़िताब से नवाजा।
विंस्टन चर्चिल (तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री) महात्मा गांधी जी के कट्टर आलोचक थे और उन्होंने गांधी जी को एक तानाशाह एवं एक हिन्दू मुसोलिनी की संज्ञा दी।
28 अक्टूबर 1934 को उन्होंने कांग्रेस पार्टी से सन्यास लेने की घोषणा की।
वर्ष 1936 में, महात्मा गांधी ने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की।
15 जनवरी 1942 को गांधी जी ने घोषणा कि, ‘मेरे राजनीतिक उत्तराधिकारी जवाहरलाल हैं।’
8 मार्च 1942 को, बॉम्बे की अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को संबोधित करते हुए, गांधी जी ने अपना प्रसिद्ध उद्धरण कहा,”भारतीयों करो या मरो”।
22 फरवरी 1944 को उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी की मृत्यु हो गई। कस्तूरबा गांधी का पार्थिव शरीर धागों से बुनीं एक साड़ी (जो कि गांधी जी ने स्वयं अपने हाथ से बुनी थी) से लपेटा गया था।
वर्ष 1948 में, महात्मा गांधी ने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का विरोध किया।
30 जनवरी 1948 के दिन शाम को महात्मा गांधी जी जब बिरला हाउस (गांधी स्मृति स्थल) में प्रार्थना करने जा रहे थे, उसी समय दक्षिण पंथ के एक कट्टरवादी व्यक्ति – नाथूराम विनायक गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।
वर्ष 1994 में, जब काले दक्षिण अफ्रीकीयों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ, तब गांधी जी को राष्ट्र नायक घोषित किया गया और तब उनके कई स्मारक बनाए गए।
वर्ष 1937 से 1948 तक, गांधी जी का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पांच बार मनोनीत किया गया, परन्तु उन्हें यह पुरस्कार कभी नहीं मिला और जब पांचवे अवसर पर उन्हें पुरस्कार देने का फैसला किया गया, तो उस से पहले उनकी हत्या कर दी गई थी।
वर्ष 2006 में, नॉर्वे स्थित नोबेल समिति के सचिव Geir Lundestad ने कहा, “हमारे 106-वर्ष के इतिहास में सबसे बड़ी चूक महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया जाना है।”
रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा पहली बार गांधी जी को “महात्मा” कहकर पुकारा गया।
वर्ष 1969 में, सोवियत संघ द्वारा महात्मा गांधी जी को सम्मान देते हुए, उनकी याद में एक टिकट जारी किया गया।
King Martin Luther गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे, और उन्होंने गांधी जी के लिए कुछ शब्द कहे,”यीशु मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी जी ने उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के उपाय दिए।”
नेल्सन मंडेला को गांधीवादी सिद्धांतों ने काफी प्रेरित किया था, और उन सिद्धांतों के आधार पर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद आंदोलन कर श्वेत शासन को सफलतापूर्वक समाप्त किया। यह कहा जाता है कि “गांधी जी ने आंदोलन की शुरुआत की और मंडेला ने इसका निष्कर्ष निकाला।”
वर्ष 1968 में, विट्ठलभाई झावेरी के द्वारा उनके जीवन के ऊपर एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाई गई हैं। जिसका शीर्षक “Mahatma: Life of Gandhi, 1869–1948”
Richard Attenborough की फिल्म “Gandhi 1982” को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
सम्पूर्ण भारत उन्हें “राष्ट्र के पिता” के रूप में वर्णित करता है, लेकिन भारत सरकार द्वारा उन्हें आधिकारिक रूप से यह शीर्षक नहीं दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, 6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने एक रेडियो एड्रेस में (सिंगापुर रेडियो पर) पहली बार इस शीर्षक “राष्ट्रपिता” का इस्तेमाल किया था।
वर्ष 1996 में, रिज़र्व बैंक के द्वारा “गांधी श्रृंखला” के अंतर्गत 10 और 500 के नोटों को जारी किया गया। इसके चलन के बाद सभी नोटों को “गांधी श्रृंखला” में परिवर्तित कर दिया गया।
वर्ष 2006 में आई बॉलीवुड कॉमेडी फिल्म “लगे रहो मुन्ना भाई (2006)” में महात्मा गांधी जी के सिद्धांतों को प्रदर्शित किया गया।
वर्ष 2007 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने 2 अक्टूबर (गांधी के जन्मदिन) को ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।
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