Alauddin Khilji Biography in Hindi | अलाउद्दीन खिलजी जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
Alauddin Khilji Biography in Hindi | अलाउद्दीन खिलजी जीवन परिचय | StarsUnfolded - हिंदी
जीवन परिचय | |
---|---|
वास्तविक नाम | अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी |
उपनाम | 'सिकंदर-ए-सानी', 'सिकन्दर द्वितीय' |
शासकीय नाम | अलाउद्दीन वाड दिन मुहम्मद शाह सुल्तान |
व्यवसाय | शासक (दिल्ली के सुल्तान) |
राज्यकाल | 1291–1296: कारा के मुक्ति (उत्तर प्रदेश) 1296: अवध के मुक्ति 1296: दिल्ली के सुल्तान |
व्यक्तिगत जीवन | |
जन्मतिथि | 1266-1267 (16 वीं-17 वीं शताब्दी के इतिहासकार हाजी-उद-दबीर के अनुसार) |
जन्मस्थान | कलात, ज़ाबुल प्रान्त, अफ़ग़ानिस्तान |
मृत्यु तिथि | 4 जनवरी 1316 |
मृत्यु स्थल | दिल्ली, भारत |
मृत्यु का कारण | ज़ियाउद्दीन बरनी (14 वीं शताब्दी के कवि और विचारक) के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की हत्या मलिक काफ़ूर ने की थी। कुछ अन्य इतिहासकारों के अनुसार एक दीर्घकालिक बीमारी की वजह से अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई थी। |
समाधि स्थल/मकबरा | कुतुब परिसर, दिल्ली ![]() |
आयु (मृत्यु के समय) | 49-50 वर्ष |
वंश | खिलजी |
गृहनगर/राज्य | दिल्ली (उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत) |
शैक्षिक योग्यता | ज्ञात नहीं |
परिवार | पिता - शिहाबुद्दीन मसूद माता- नाम ज्ञात नहीं भाई- अलमास बेग (बाद में उलुग खान), कुतलुग टिगीन और मुहम्मद बहन- ज्ञात नहीं |
धर्म | इस्लाम (सुन्नी मुस्लिम) |
शौक/अभिरुचि | घुड़सवारी, तलवारबाजी, तैरना |
प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
सेक्सुअल ओरिएंटेशन | कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वह उभयलिंगी थे हालांकि, इसका कोई ठोस सबूत नहीं |
पत्नी / पति | मलिका ए-जहाँ(जलालुद्दीन की बेटी) महरू (अल्प खान की बहन) कमलादेवी (कर्ण की पूर्व पत्नी) झत्यपाली (रामचन्द्र की बेटी) |
बच्चे | बेटा- खिज़्र खान (महरू से), शादी खान, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह, शाहबुद्दीन उमर (महरू से) बेटी- कोई नहीं |
अलाउद्दीन खिलजी से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
16 वीं-17 वीं शताब्दी के इतिहासकार हाजी-उद-दबीर के मुताबिक, अलाउद्दीन का जन्म अली गुरशप के रूप में कलात, ज़ाबुल प्रान्त, अफ़्ग़ानिस्तान में हुआ।
अलाउद्दीन अपने पिता शिहाबुद्दीन मसूद (जो खिलजी वंश के संस्थापक सुल्तान अलौद्दीन के बड़े भाई थे) के चार पुत्रों में सबसे बड़े थे।
बचपन में पिता के देहांत के बाद, अलाउद्दीन का पालन-पोषण उनके चाचा जलालुद्दीन खिलजी के द्वारा किया गया।
जलालुद्दीन ने अपनी बेटीयों की शादी अलाउद्दीन और उनके छोटे भाई अलमास बेग के साथ करवाई थी।
जब जलालुद्दीन दिल्ली के सुल्तान बने, तो उन्होंने अलाउद्दीन को अमीर-ए-तुजुक (अनुष्ठान प्रमुख के समकक्ष) के रूप में नियुक्त किया और अलमास बेग को अखुर-बेग (अश्व प्रमुख के समकक्ष) के रूप में नियुक्त किया।
वह जमलुद्दीन की बेटी से शादी कर के खुश नहीं थे। जलालुद्दीन के सुल्तान बनने के बाद उनकी पत्नी एक राजकुमारी बन गई थी, और उनके बर्ताव में अचानक से अभिमान आ गया ।
अलाउद्दीन का दूसरा विवाह “महरू” नाम की महिला के साथ हुआ था।
1291 में कारा के राज्यपाल मालिक छज्जू ने सुल्तान के राज्य में विद्रोह कर दिया था, इस समस्या को अलाउद्दीन ने बहुत अच्छे से संभाला, जिसके बाद उन्हें कारा का मुक्ति (राज्यपाल) बना दिया गया।
मालिक छज्जू ने जलालुद्दीन को एक अप्रभावी शासक माना और दिल्ली के सिंहासन को हड़पने के लिए अलाउद्दीन को उकसाया।
जलालुद्दीन के साथ विश्वासघात करना आसान काम नहीं था, क्योंकि इसके लिए उन्हें एक बड़ी सेना और हथियारों के लिए पैसे की आवश्यकता थी। इस योजन में लगने वाले धन की कमी को पूरा करने के लिए अलाउद्दीन ने आसपास के हिंदू साम्राज्यों में लूट-पाट शुरू कर दी।
1293 में अलाउद्दीन ने भिलसा (मालवा के परमार राज्य में एक अमीर शहर) में लूट-पाट की और सुल्तान का विश्वास जीतने के लिए, अलाउद्दीन ने पूरी लूट को जलालुद्दीन को सौंप दी। इसे खुश हो कर जलालुद्दीन ने उन्हें अरीज़-आई ममालिक (युद्ध सेनापति) नियुक्त किया और उन्हें सेना को मजबूत बनाने के लिए अधिक राजस्व बढ़ाने जैसे अन्य विशेषाधिकार भी दे दिए।
भिलसा में लूट की सफलता के बाद अलाउद्दीन ने अपनी अगली लूट 1296 में देवगिरी (जो कि दक्कन क्षेत्र स्थित दक्षिणी यादव साम्राज्य की राजधानी) में की, वहाँ से उन्होंने रत्नों, कीमती धातुओं, रेशम उत्पादों, घोड़ों, हाथियों और दासों सहित भारी मात्रा में धन की लूट-पाट की। इस बार भी जलालुद्दीन लूट का सारा सामान अलाउद्दीन द्वारा सौंपे जाने की उम्मीद कर रहे थे। हालांकि, दिल्ली लौटने के बजाय अलाउद्दीन लूट का सामान कारा लेकर चला गया।
अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन को एक पत्र लिखा और लूट के साथ दिल्ली वापस नहीं आने के कारण माफ़ी मांगी। इसके बाद जलालुद्दीन ने व्यक्तिगत रूप से अलाउद्दीन से मिलने के लिए कारा आने का फैसला किया। जब वह कारा के रास्ते पर थे, तब उन्होंने (जलालुद्दीन) करीब 1,000 सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी के साथ गंगा नदी पार करने का फैसला किया।
20 जुलाई 1296 को जब जलालुद्दीन ने गंगा नदी के किनारे अलाउद्दीन से मुलाकात की तब अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन को गले लगाते समय उनकी पीठ पर चाकू से वार कर दिया और उनकी मृत्यु के बाद खुद को दिल्ली का नया सुल्तान घोषित कर दिया।
अलाउद्दीन को पहले ‘अली गुरशास्प’ के रूप में जाना जाता था। जुलाई 1296 कारा में अलाउद्दीन ने अपने आप को औपचारिक रूप से ‘अलाउद्दीन उद-दीन मुहम्मद शाह-सुल्तान’ की उपाधि के रूप में नया सुल्तान घोषित किया।
अलाउद्दीन ने अपने अधिकारियों को यथासंभव कई सैनिकों की भर्ती करने और उन्हें (अलाउद्दीन) एक उदार सुल्तान के रूप में पेश करने का आदेश दिया। उन्होंने कारा में अपने मुकुट के साथ-साथ 5 मन (लगभग 35 किलोग्राम) सोना वितरित किया।
भरी बारिश और नदियों में बाढ़ की स्थिति के कारण, उन्होंने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। 21 अक्तूबर 1296 को अलाउद्दीन खिलजी ने औपचारिक रूप से खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया।
इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के अनुसार, दिल्ली के सुल्तान के रूप में अलाउद्दीन का पहला वर्ष सबसे खुशहाल वर्ष रहा, जिसे दिल्ली के लोगो ने पहले कभी नहीं देखा था।
अपने शासनकाल के दौरान, अलाउद्दीन ने अपने राज्य को भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल इलाके में फैला दिया। उन्होंने रणथम्भोर, गुजरात, मेवाड़, जालोर, मालवा, मबर, वारंगल और मदुरई पर विजय प्राप्त की।
हर बार जब मंगोलों ने दिल्ली पर हमला किया, तो अलाउद्दीन ने उन्हें हरा दिया। उन्होंने मंगोल को जालंधर (1298), किली (1299), अमरोहा (1305) और रवि (1306) की लड़ाइयों में हराया। जब मंगोल सैनिकों में से कुछ एक ने विद्रोह किया, तो अलाउद्दीन के प्रशासन ने विद्रोहियों को क्रूर दंड दिया, उनके परिवारों और उनके बच्चों की हत्या उनकी माताओं के सामने कर दी गयी।
अलाउद्दीन ने गुजरात पर आक्रमण के दौरान मलिक काफ़ूर नामक एक दास (जिसने बाद में अलाउद्दीन के दक्षिणी भारत अभियान का नेतृत्व किया) को बंधक बना लिया।
1301 में उन्होंने अपने अधिकारियों उलुग खान और नुसरत खान को रणथंभौर पर आक्रमण करने का आदेश दिया। जब घेराबंदी के दौरान नुसरत खान की मृत्यु हो गई, तब अलाउद्दीन ने घेराबंदी का कार्यभार खुद संभाला और जुलाई 1301 में रणथंभौर के किले पर विजय प्राप्त की। रणथंभौर की घेराबंदी के दौरान, अलाउद्दीन को 3 असफल विद्रोहों का सामना करना पड़ा और विद्रोहों को दबाने के लिए, उन्होंने एक खुफिया और निगरानी प्रणाली की स्थापना की तथा प्रशासन को और सख्त बना दिया।
वर्ष 1302-1303 की सर्दियों में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ (रत्नसिम्हा द्वारा शासित गुहाला राज्य की राजधानी) पर हमला किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर हमला इसलिए किया। क्योंकि वह रावल रतन सिंह रतनसिंह की सुंदर पत्नी पद्मावती पर मोहित हो गए थे। हालांकि, आधुनिक इतिहासकारों ने इस कहानी की प्रामाणिकता को खारिज कर दिया है।
अगस्त 1303 के आसपास मंगोलों ने दिल्ली पर एक बार फिर आक्रमण किया परंतु पर्याप्त तैयारी की कमी के कारण अलाउद्दीन को, निर्माणाधीन ‘सीरी किले’ में शरण लेनी पड़ी।
वर्ष 1303 में हुए मंगोल आक्रमण ने अलाउद्दीन को अपने प्रशासन में कुछ साख्यात कदम उठने को मजबूर कर दिया, ताकि ऐसे हमले दुबारा न हो उन्होंने भारत के मंगोल मार्गों पर सैन्य उपस्थिति और किलों को मजबूत कर दिया। सेना को मजबूत बनाए रखने के लिए और पर्याप्त राजस्व प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए; उन्होंने आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला कार्यान्वित की।
दिसंबर 1305 में मंगोलों ने फिर से भारत पर हमला किया। मलिक नायक के नेतृत्व में अलाउद्दीन के मजबूत घोड़ सवारों ने अमरोहा की लड़ाई में मंगोलों को हराया। 16 वीं शताब्दी के इतिहासकार फिरिश्ता के मुताबिक, 8000 से ज्यादा मंगोलों के सरों (मुण्डीयो) का इस्तेमाल अलाउद्दीन द्वारा सीरी किले की स्थापना के लिए किया गया।
अलाउद्दीन दक्षिण भारत को जीतने वाले पहले मुस्लिम राजा थे। दक्षिणी भारत पर विजय प्राप्त करने में मलिक काफ़ूर ने उनकी मदद की थी।
अलाउद्दीन का प्रशासन विभिन्न सामाजिक-आर्थिक सुधारों के लिए जाना जाता है। सबसे महत्वपूर्ण कृषि सुधार है। एक मजबूत और कुशल राजस्व प्रशासन प्रणाली की स्थापना की गई, सिस्टम की व्यवस्था करने के लिए बड़ी संख्या में कलेक्टर, एकाउंटेंट और एजेंटों को काम पर रखा गया। उनके प्रशासन के तहत अधिकारियों को अच्छा भुगतान दिया जाता था। अलाउद्दीन ने भ्रष्ट अधिकारियों के लिए कड़े दंड लगाए थे।
अलाउद्दीन का प्रशासन अपने बाजार में सुधार और मूल्य नियंत्रण के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने दिल्ली में 3 अलग-अलग बाज़ारों की स्थापना की – एक अनाज के लिए, कपड़ा और दैनिक उपयोग वाली वस्तुओं जैसे कि घी, तेल और चीनी के लिए दूसरा और तीसरा बाज़ार घोड़ों, मवेशियों और दासों के लिए था। अलाउद्दीन ने वस्तुओं की कीमत के अनुसार उनके मूल्य तय किए।
अलाउद्दीन के प्रशासन की एक और महत्वपूर्ण विशेषता थी कर प्रणाली। भारत के कैम्ब्रिज आर्थिक इतिहास (The Cambridge Economic History of India) के अनुसार अलाउद्दीन खलजी का कराधान प्रणाली एक ऐसी संस्था थी, जो सबसे लंबे समय तक चली और इसका प्रभाव उन्नीसवीं या बीसवीं सदी में भी देखने को मिला। उन्होंने गैर-मुसलमानों पर 4 कर – जज़िया (चुनाव कर), खराज (भूमि कर), घरी (घर कर) और चरह (चारागाह कर) को लागू किया।
इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी के मुताबिक, अलाउद्दीन ने एक नया धर्म स्थापित करने के बारे में सोचा था।
कुछ इतिहासकारों ने उनको उभयलिंगी बतया है। उनके अनुसार अलाउद्दीन मलिक काफ़ूर के प्रति बहुत आकर्षित थे। जिसे उन्होंने एक दस के रूप में खरीदा और बाद में उसे (मलिक काफ़ूर) अपने सबसे वफादार अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया। हालांकि, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।
अपने जीवन के आखरी वर्षो के दौरान वह एक बीमारी से पीड़ित थे। उनका अपने अधिकारियों पर से विश्वास खत्म हो गया, और उन्होंने अपने कई वफादार अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया।
जनवरी 1316 में अलाउद्दीन का निधन हो गया। इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी के अनुसार मलिक काफ़ूर ने अलाउद्दीन की हत्या करने की साजिश रची थी।
वर्ष 2017 में संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म “पद्मवती” में रणवीर सिंह ने अलाउद्दीन खलजी का चित्रित किया।
कुछ आधुनिक इतिहासकारों के शब्दों में यहां अलाउद्दीन खिलजी का विवरण दिया गया है:-
अलाउद्दीन खिलजी की पूरी कहानी जानने के लिए यहां क्लिक करें ।
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